आरति कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपै ।
रोग-दोष जाके निकट न झांपै ।।
अंजनी पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रेम सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाये ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई।।
लंका जारि असुर संहारे।
सिया रामजी के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे ।
आनि सजीवन प्रान उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जम-कारे ।
अहिरावन की भुजा उखारे ।।
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारे ।
जै जै जै हनुमान उचारे ।।
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावै ।
बसि बैकुंठ परम पद पावै ।।
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ।।
आरति कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
Copyright © 2018 - 2021, Nastrology.com, All Rights Reserved